
देश भक्ति को पाप कहें यदि , हूं मैं पापी घोर भयंकर ,
किंतु रहा वह पुण्य कर्म तो , मेरा है अधिकार पुण्य पर
अचल खड़ा मैं इस वेदी पर |
“वास्तव में मेरे जीवन का उसी समय अंत हो गया था जब मैंंने गांधी जी पर गोली चलाई थी | उसके पश्चात से मैं अनासक्त जीवन बिता रहा हूं|
मैं मानता हूं कि गांधी जी ने देश के लिए काफी कष्ट उठाएं , जिसके कारण मैं उनके कार्यों के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हूँ, किंतु देश के सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का अधिकार नहीं था |
मैं किसी प्रकार की दया नहीं चाहता हूं , मैं यह भी नहीं चाहता कि मेरी ओर से कोई दया की याचना करें |
अपने देश के प्रति भक्ति भाव रखना यदि पाप है तो मैं स्वीकार करता हूं कि यह पाप मैंने किया है | यदि प्रशंसनीय है तो मैं अपने आप को उस प्रशंसा का अधिकारी समझता हूं | मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य नीति की दृष्टि से पूर्णतया उचित है | मुझे इस बात में लेशमात्र भी संदेह नहीं की भविष्य में किसी समय सच्चे इतिहासकार , इतिहास लिखेंगे तो वे मेरे इस कार्य को उचित ठहराएंगे |”
(साभार : मैंने गांधी वध क्यों किया ? नथुराम विनायक गोडसे)
एक ऐसे स्वाभिमानी व्यक्तित्त्व का स्वामी जिसने कभी छूत-छात और जन्मजात जातीयता को नहीं माना | उनका यही सोचना था कि सब हिंदू बराबर है चाहे वह किसी भी जाति में उत्पन्न हुए हों, चाहे किसी भी व्यवसाय के हो , सबको एक ही सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से देखा जाना चाहिए |
कुछ वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काम करने के पश्चात गोडसे जी हिंदू महासभा में आ गए और हिंदू ध्वज के नीचे एक कर्तव्यनिष्ठ सैनिक के रूप में काम करते रहे | फिर कुछ वर्ष पश्चात उन्होंने एक मराठी दैनिक पत्र ‘अग्रणी’ का प्रकाशन कार्य आरंभ किया और उसको कई वर्षों तक सफलतापूर्वक चलाया |
उस दौरान देश के विभाजन की त्रासदी हुई , पंजाब प्रांत से हिन्दु-सिख शरणार्थी जत्थों के जत्थों में दिल्ली पहुंच रहे थे और सबने खाली पड़ी मस्जिदों में शरण ले रखी थी लेकिन गांधी जी के निर्देशों कि वजह से सभी निराश्रित दिल्ली में सर्दियों की रात में मस्जिदों से निकाले गए और जब वही शरणार्थी अपने परिजनों के साथ उस भव्य भवन ( बिरला हाउस – गांधी जी का निवास स्थान ) के बाहर जाकर ये विनती करते हैं कि ‘ हमें स्थान दो ‘ तो उनका रुदन सुनकर उल्टा गांधी जी उन सबको वापस पंजाब जाने कि सलाह देते हैं जहां से वो अपना सब कुछ लुटाकर आये थे |
पाकिस्तान प्रांंत में बसे हिंदुओं के मंदिरों गुरुद्वारों को नष्ट कर दिया गया था |प्रतिदिन सहस्त्रों हिंदुओं का नरसंहार हो रहा था, हजारों सिखों को गोलियों से भून दिया गया , हिंदू स्त्रियों को नग्न कर जुलूस निकाले जाते थे , उनको पशुओं की भांति बेचा जा रहा था , लाखों लोगों का जीवन एक झटके में तबाह हो गया था |
राष्ट्रपिता अपने पिता रुपी कर्तव्य का पालन करने में असफल रहे , उन्होंने बड़ी निर्दयता से राष्ट्र के दो टुकड़े कर दिए , अगर वे सच्ची आत्मा से पाकिस्तान का विरोध करते तो मुसलमान कभी भी इतनी सुदृढ़ता से यह मांग ना रख पाते और अंग्रेज पूर्ण प्रयत्न करके भी इसे एक अलग देश ना बना पाते | देश की जनता पाकिस्तान बनाने की घोर विरोधी थी पर गांधी जी ने जनता को धोखा दिया |
कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी जी को मुसलमान दंगाइयों ने निर्दयता पूर्वक मार दिया था और गांधी जी उनका उदाहरण देकर कहते थे कि इस प्रकार अहिंसा पर चलकर अपना बलिदान कर देना चाहिए|
यदि उनको अपने अहिंसा के सिद्धांत पर इतना ही विश्वास होता तो वो केेरल का मालाबार ( मोपला कांड ) , बंंगाल का नोआखली , कश्मीर , पंजाब प्रांत और हैदराबाद आदि मुस्लिम बहुल इलाकों में भी मुसलमानों के सामने अपने सत्याग्रह की शक्ति दिखाते परन्तु उन्होंने सर्व हित की अपेक्षा सिर्फ मुसलमानो के हितों की चिन्ता थी|
गांधी जी ने पाकिस्तान या मुसलमान के विरोध में एक भी शब्द नहीं कहा , अलबत्ता जिन्होंने पाकिस्तान बनाने का विरोध किया वह गांधीवादी नेताओं द्वारा प्रताड़ित किए गए, उनको देशद्रोही , सांप्रदायिक तक कहा गया | जिन क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी , देश निर्वसन झेला, यातनायें सही, हंंसते हंसते फांसी का फंदा गले लगा लिया, आजीवन कारावास सहा , उनके बलिदान का परिणाम क्या निकला |धार्मिक आधार पर देश विभाजन |
गांधी जी के 06-अप्रैल-1947 को एक सभा में दिये गए वक्तव्य के अनुसार हिंदुओं को मुसलमानो के विरुद्ध क्रोध नहीं करना चाहिए , चाहे मुसलमान उन्हें मिटाने का विचार ही क्यों न रखते हो | अगर मुसलमान सभी को मार डालें तो भी हम बहादुरी से मर जाएं | इस दुनिया में भले ही उन्हीं का राज हो जाए, हम नई दुनिया के बसने वाले हो जाएंगे | कम से कम मरने से हमें बिल्कुल नहीं डरना चाहिए | जन्म और मरण तो हमारे नसीब में लिखा हुआ है , फिर उसमें हर्ष-शोक क्यों करें | अगर हम हंसते-हंसते मरेंगे तो सचमुच एक नए जीवन में प्रवेश करेंगे ,एक नए हिंदुस्तान का निर्माण करेंगे |
गांधी जी 23 सितंबर 1947 को एक सभा में रावलपिंडी से आये हुये एक शरणार्थी को सांत्वना देते हुुये कहते हैं कि आप शांत रहें और आखिर में तो ईश्वर बडा है! ऐसी कोई जगह नहीं जहां ईश्वर ना हो! उसका भजन करो और उसका नाम लो, सब अच्छा हो जाएगा ! शरणार्थी के पूछने पर कि वहां पाकिस्तान में जो पड़े हैं उनका क्या करें ! गांधी जी बोले , आप यहां आए क्यों , वहां मर क्यों नहीं गए ? मैं तो इसी चीज पर कायम हूं कि हम पर जुल्म हो तो भी हम जहां पड़े हैं , वहीं पड़े रहे , मर जाएँ | लोग मार डालें तो मर जाएं , यह ना कहें कि अब हम क्या कर सकते हैं : मकान नहीं , कुछ नहीं | मकान तो पड़ा है , धरती माता हमारा मकान है , ऊपर आकाश है | जो मुसलमान डर से भाग गए, उनके मकान पड़े हैं , जमीन पड़ी है | तो क्या मैं कहूं कि आप मुसलमान के घरों में चले जाएं ? मेरी जुबान से ऐसा नहीं निकल सकता , मुसलमान के घर जो कल तक थे , वह आज भी उनके हैं | उसमें जो हिंदू शरणार्थी है वह अपने आप चले जाएं मैं आपको यह परामर्श दूंगा कि आप सिख और हिन्दु शरणार्थियों को कहें कि वे वापस पाकिस्तान में अपने स्थान पर चले जाएं | जो लोग पंजाब में मर चुके हैं उनमें भी एक भी वापस नहीं आ सकता | हमें भी अंत में मरना है | यह सच है कि वह कत्ल कर दिए गए लेकिन कोई बात नहीं , बहुत से हैजे और दूसरे कारणों से मर जाते हैं | यदि वह कत्ल हुए तो वीरता से मरे ,उन्होंने कुछ खोया नहीं, पाया है | मारने वाले तो हमारे मुस्लिम भाई हैं | हमारे भाई अपना धर्म बदल दे तो क्या वह अपने भाई ना रहेंगे |
ऐसे विचार हिन्दु जन मानस को और उद्वेलित कर रहे थे जो कि अचानक हुये बंटवारे के बाद से वैसे ही किंकर्तव्यविमूढ़ था, अपने को ठगा सा महसूस कर रहा था |
उसी समय गांधी जी के दबाव में भारत सरकार को पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपए कि सहायता राशि देने के लिए बाध्य होना पड़ा | इस घटना ने आग में घी डालने का काम किया, लोगों के मन में छिपी हुई वेदना गुस्से के रूप में प्रस्फुटित होने लगी , कई जगह तो गांधी जी के विरोध में उग्र प्रदर्शन होने लगे , लोग गांधी जी के सामने ही उनको कोसने लगे |
गांधी जी का आभामंडल मद्धिम पड़ने लगा था |
गांधीवादी अहिंसा का यह सिद्धांत हिन्दु जन मानस को अन्धेरे की ओर धकेल रहा था | उस अहिंसा रुपी नपुंसकता का विनाश करने का एक ही तरीका था और वो था गांधी वध |
गोडसे जानते थे कि गांधी वध के पश्चात वह नष्ट कर दिये जाएंगे, लोग उनसे घॄणा करने लगेंगे , उनका सम्मान जो उन्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय था, वह नष्ट हो जाएगा किंतु साथ ही यह भी विश्वास था कि यह नपुंसकता सदा के लिए विदा हो जायेगी तो देश की राजनीति को नई दिशा मिलेगी | देश शक्तिशाली होगा | उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा , वह अवश्य मरेंगे , किंतु देश अत्याचारों से मुक्त होगा , देश ऐसे मार्ग पर चलेगा जो उचित होगा | यही सब विचारकर उन्होंने गांधी जी का वध करने का निश्चय किया और राष्ट्र को आने वाले स्पष्ट दिखाई देते खतरों को कुछ समय के लिए रोक दिया|
नथुराम विनायक गोडसे जी की अन्तिम इच्छा
जिस शुभ दिन ,सिंधु नदी भारत वर्ष के ध्वज की छाया में स्वछंदता से बहने लगेगी ,उन दिनों मेरी अस्थियों या राख का कुछ छोटा सा हिस्सा उस नदी में बहा दिया जाये |
उस हुतात्मा ने देश की खातिर, हम सब की खातिर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया |