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ऋग्वैदिक काल का निर्णायक युद्ध जिसने ‘भारत वर्ष’ के नामकरण की नींव  रखी

  ऋग्वैदिक संस्कृति के प्रारम्भिक काल में वेदों में वर्णित देेव और असुर संग्राम असल में वैदिक आर्यों के बीच विचारधारा के टकराव और सरस्वती नदी के पास की भूमि का नियंत्रण अपने हाथ में लेने की जद्दोजहद को दर्शाता है | देेव- असुर-दैत्य-दानव मूलत: एक आर्य जनजाति / समुदाय ही थे और सभी अग्नि की […]

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सरस्वती : ऋग्वैदिक काल कि महान नदी से महाभारत काल की सिमटती हुयी नदी तक

  ऋग्वेद भारत के लगभग दस हजार साल से भी ज्यादा पुराने उस समय को चित्रित करता है जब हिमालय के उत्तरी हिस्से  से  सात  प्रमुख नदियां , पश्चिम ( पंजाब,  राजस्थान ) की ओर बहते हुये सरस्वती नदी में मिलकर सिन्धु सागर  (आज के अरब सागर ) में जाकर विलीन हो जाती थीं |

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अमर बलिदानी

 चिड़िया नाल मैं बाज लड़ावां, गिदरां नू मैं शेर बनावा सवा लाख से एक लड़ावा,  ता मैं गोविंद नाम कहावा  गुरू गोविंद सिंह जी के मुखारविंद से निकली इन पंक्तियों को चरितार्थ करता हुआ चमकौर गड़ी का महायुद्ध (दिसंबर 1705) जो गुरु गोविंद सिंह जी के चारों साहबजादों और चालीस सिख सरदारों की असाधारण वीरता और बलिदान की

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हुतात्मा

देश भक्ति को पाप कहें यदि , हूं मैं पापी घोर भयंकर , किंतु रहा वह पुण्य कर्म तो , मेरा है अधिकार पुण्य पर अचल खड़ा मैं इस वेदी पर | “वास्तव में मेरे जीवन का उसी समय अंत हो गया था जब मैंंने गांधी जी पर गोली चलाई थी | उसके पश्चात से मैं अनासक्त

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