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अमर बलिदानी

 चिड़िया नाल मैं बाज लड़ावां, गिदरां नू मैं शेर बनावा सवा लाख से एक लड़ावा,  ता मैं गोविंद नाम कहावा  गुरू गोविंद सिंह जी के मुखारविंद से निकली इन पंक्तियों को चरितार्थ करता हुआ चमकौर गड़ी का महायुद्ध (दिसंबर 1705) जो गुरु गोविंद सिंह जी के चारों साहबजादों और चालीस सिख सरदारों की असाधारण वीरता और बलिदान की

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हुतात्मा

देश भक्ति को पाप कहें यदि , हूं मैं पापी घोर भयंकर , किंतु रहा वह पुण्य कर्म तो , मेरा है अधिकार पुण्य पर अचल खड़ा मैं इस वेदी पर | “वास्तव में मेरे जीवन का उसी समय अंत हो गया था जब मैंंने गांधी जी पर गोली चलाई थी | उसके पश्चात से मैं अनासक्त

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